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हरिद्वार (ब्यूरो,TUN )* देवो  की धरती उत्तराखंड में धर्मनगरी हरिद्वार गंगा किनारे बसा एक शहर है जो कि अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान रखता है जिसके दोनों तरफ पर्वत की श्रंखला है हरा भरा हरिद्वार जो इस समय कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है हर 12 साल में धर्मनगरी हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन और हर 6 साल में अर्द्ध कुंभ का आयोजन इस नगरी में होता है प्रकृति की गोद में जाने जाने वाली नगरी को मानो नजर लग गई है

किस तरीके से धर्मनगरी बदल रही है कंक्रीट के जंगल में*

धर्मनगरी का स्वरूप दिन प्रतिदिन ऐसे बदलता जा रहा है जैसे मानो हरिद्वार एक कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा होगा रातो रात हरे-भरे बाग कट जाते हैं और उन पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी होने लगती है और एनजीटी के नियम को ताक पर रखकर गंगा किनारे बड़े-बड़े होटल और अपार्टमेंट बन जाते हैं भला इसको अब रोकेगा कौन, इसके लिए उत्तराखंड में हरिद्वार विकास प्राधिकरण बनाया गया है पर जिस तरीके से प्रकृति की गोद में समाया हुआ हरिद्वार कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है  इससे इस विभाग के कार्यों पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है कि किस तरीके से अवैध निर्माण धर्मनगरी हरिद्वार में रातो रात खड़े हो जाते हैं और विकास प्राधिकरण आंखें मूंदे रहता है कभी भी इन पर कार्रवाई ना करने का कारण अपने यहां स्टाफ की कमी को बताता है और कभी अधिकारियों के ट्रांसफर को दर्शाता है
कई ऐसे अवैध निर्माण जोकि हरिद्वार विकास प्राधिकरण के संज्ञान में होने के बाद भी अवैध निर्माणों पर कार्रवाई का सुस्त प्रचलन इतना अधिक प्रख्यात है की अवैध निर्माण करने वाले भू माफिया एक के बाद एक मंजिलों पर लिंटर डालते रहते हैं और विभाग में फाइल सील के नाम पर घूमती रहती है जब तक फाइल पर आदेश होते हैं तब वह अवैध निर्माण पूर्ण हो जाता है और उसके बाद सब जानते हैं……..

शिव भगवान कि ससुराल कनखल भी अब तब्दील हो रही है कंक्रीट के जंगल में*

यहां तक शुभ भगवान की ससुराल कनखल में ऐसे गंगा किनारे कई अवैध निर्माण चल रहे हैं जिनका संज्ञान होने के बाद भी हरिद्वार विकास प्राधिकरण उन पर कार्रवाई करने से बच रहा है या फाइलों को सिर्फ एक टेबल से दूसरे टेबल पर
लुढ़का रहा है

क्या हरिद्वार विकास प्राधिकरण के सुस्त रवैया से हरिद्वार बन रहा है कंक्रीट का जंगल ?*

इस विभाग में अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं पर वह अपनी कार्यशैली से हरिद्वार के लोगों को क्या दे के जाते हैं यह भी उनको सोचना चाहिए क्योंकि प्रकृति से खिलवाड़ करना मनुष्य को ही भुगतना पड़ता है

अब देखना यह होगा कि हरिद्वार विकास प्राधिकरण ऐसे अवैध निर्माणों पर शिकंजा कसता है या फिर अपने इस परंपरा को आगे बढ़ाता है

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